भारत की वंचित जातिः बेतिया के डोम-मेहतर ज़िंदगी गुज़ारने के लिए बांस की बिनाई और मानव मल की सफ़ाई करते हैं

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बिहार के बेतिया में दलितों का जीवन जातिवादी नीच काम और भेदभाव के बीच फँसा हुआ है जो सरकार द्वारा उनपर थोपा गया है।

डब्लू मलिक पैसा कमाने के लिए शहर जाते हैं और वहाँ सफ़ाई कर्मचारी के रूप में काम करते हैं। बांस से बनी अपनी झोपड़ी के अंदरूनी हिस्से को दिखाते हुए डब्लू मलिक कहते हैं, “हमारे दादा 50 साल पहले परसौना गांव से यहां आए थें। यह मेरे नाना की संपत्ति है। यहाँ मैं एक ईंट भी नहीं जोड़ सकता हुँ; मैं ग़रीब हूँ। यहाँ तक कि ये बांस की झोपड़ी बनाने में भी 20,000 रुपये ख़र्च होते हैं।”

वे कहते हैं उनके पिता मानसिक रूप से बीमार हैं और उनके पास उनके इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। आगे कहते हैं, “जब भी हम सरकारी अस्पताल में जाते हैं, वे ड्रिप लगा देते हैं … जैसे ही यह ख़त्म होता है, हमें जाने के लिए कहा…

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