पृथ्वी पर दो अलग– अलग बिन्दु हैं– उत्तरी ध्रव और दक्षिणी ध्रुव। इन दो बिन्दुओं की मदद से भूमध्य रेखा खींचना संभव है, क्योंकि यह दोनों ध्रुवों के बिल्कुल बीच में स्थित है। पृथ्वी की सतह पर स्थानों का सटीक पता लगाने के लिए ग्लोब पर रेखाओं का नेटवर्क खींचा जाता है। क्षैतिज रेखाएं अक्षांश रेखाएं हैं और ऊर्ध्वाधर रेखाएं देशांतर रेखाएं हैं। ये रेखाएं एक दूसरे को आपस में समकोण पर काटती हैं और एक नेटवर्क बनाती हैं जिसे ग्रिड (Graticule) कहते हैं। ग्रिड पृथ्वी की सतह पर स्थानों का सटीक पता लगाने में हमारी मदद करती है।
अक्षांश
हमारी पृथ्वी अपने केंद्र से गुजरने वाले काल्पनिक अक्ष पर लगातार घूमती रहती है। इस अक्ष का उत्तरी छोर उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी छोर दक्षिणी ध्रुव कहलाता है। सबसे बड़ा संभावित वृत्त जिसे ग्लोब पर खींचा जा सकता है, वह है भूमध्य रेखा (Equator)। यह ग्लोब को दो समान हिस्सों में बाँट देता है। इसका उत्तरी आधा हिस्सा उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी आधा हिस्सा दक्षिणी गोलार्द्ध कहलाता है। चूंकि दोनों में से किसी भी ध्रुव से भूमध्य रेखा की दूरी पृथ्वी के गोल चक्कर का एक चौथाई है, इसे इस प्रकार मापा जाएगा – 360o का ¼ यानि 900। इस प्रकार 900 उत्तरी अक्षांश उत्तरी ध्रुव को और 900 दक्षिणी अक्षांश दक्षिणी ध्रुव को बताता है।
भूमध्यरेखा के समानांतर काल्पनिक रेखाओं का एक सेट खींचा गया है जो पृथ्वी को घेरता है और पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर घूमता है। इन्हें अक्षांश (latitudes) कहा जाता है। चूंकि ये सभी रेखाएं भूमध्य रेखा के साथ– साथ एक दूसरे के भी समानांतर होती हैं, इसलिए इन्हें अक्षांश समानांतर कहा जाता है। अक्षांश किसी स्थान की भूमध्यरेखा से कोणीय दूरी है, जो या तो उत्तर या दक्षिण दिशा में होता है। इसे किसी भी ध्रुव की दिशा में भूमध्य रेखा से अंशों (डिग्री) में मापा जाता है। एक अंश (0) को साठ बराबर हिस्सों में बांटा जाता है और प्रत्येक इकाई को एक मिनट (‘) कहते हैं। एक मिनट को फिर साठ बराबर हिस्सों में बांटा जाता है और प्रत्येक इकाई को एक सेकेंड (”)कहते हैं।
भूमध्यरेखा से ध्रुवों की तरफ अक्षांश रेखाएं छोटी होती जाती हैं। ध्रुव पर यह एक बिन्दु में बदल जाती हैं। भूमध्यरेखा का मान शून्य है। भूमध्यरेखा के उत्तर के सभी बिन्दु ‘उत्तरी अक्षांश’ और दक्षिण के सभी बिन्दु ‘ दक्षिणी अक्षांश’ कहलाते हैं। इसलिए प्रत्येक अक्षांश के मान के बाद ‘N’ या ‘S’ अक्षर लिखे जाते हैं।
भूमध्य रेखा (00) ,उत्तरी ध्रुव (900N) वदक्षिणी ध्रुव (900S) के अलावा हमारे पास चार अन्य महत्वपूर्ण अक्षांश समानांतर हैं-
- कर्क रेखा (23030’N)
- मकर रेखा (23030’S)
- आर्कटिक वृत्त (66030’N)
- अंटार्कटिक वृत्त (66030’S)
ताप कटिबंध
कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच सभी अक्षांशों पर वर्ष में कम– से– कम एक बार दोपहर का सूर्य सिर के ऊपर स्थित होता है। इसलिए इस क्षेत्र में सबसे अधिक गर्मी होती है और इसे उष्णकटिबंध कहा जाता है। 21 जून को सूर्य कर्क रेखा के ठीक उपर होता है। 22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा के ठीक उपर होता है। ये दो अक्षांश उष्णकटिबंध की बाहरी सीमा बनाते हैं। उष्णकटिबंध पृथ्वी का सबसे गर्म हिस्सा है। ज्यादातर रेगिस्तान यहीं स्थित हैं।
कर्क रेखा और मकर रेखा के पार किसी भी अक्षांश पर दोपहर का सूर्य सिर के ऊपर स्थित नहीं होता है। हम जैसे – जैसे ध्रुवों की तरफ बढ़ते हैं, सूर्य की किरणों का कोण कम होता चला जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा और आर्कटिक वृत्त और दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा और अंटार्कटिक वृत्त के बीच आने वाले क्षेत्रों का तापमान मध्यम होता है, यानि इन इलाकों में न तो बहुत अधिक गर्मी पड़ती है और न ही बहुत अधिक ठंड। इसलिए ये शीतोष्ण कटिबंध हैं।
उत्तरी गोलार्द्ध में आर्कटिक वृत्त और उत्तरी ध्रुव के बीच के क्षेत्र और दक्षिणी गोलार्द्ध में अंटार्कटिक वृत्त और दक्षिणी ध्रुव के बीच के क्षेत्र बहुत ठंडे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां क्षितिज पर सूर्य बहुत अधिक नहीं चमकता। इसलिए यहां हमेशा सूर्य की तिरछी किरणें ही पड़ती हैं और इसी वजह यह शीत कटिबंध है।
देशांतर
पृथ्वी को पूर्वी गोलार्द्ध और पश्चिमी गोलार्द्ध में बांटने वाली काल्पनिक रेखाओं का सेट जो पृथ्वी पर उत्तर दक्षिण दिशा में घूमता हैं, देशांतर (longitudes) कहलाता हैं। ये रेखाएं एक दूसरे के समानांतर नहीं होती। ध्रुवों पर ये सभी एक हो जाती हैं। इनके बीच की दूरी ‘ देशांतर अंश’ में मापी जाती है। ये गोलार्द्ध का निर्माण करती हैं। देशांतर की शिरोबिन्दु (meridians of longitudes) और अक्षांश के समानांतर मिलकर एक नेटवर्क का निर्माण करते हैं, जिसे ग्रिड कहा जाता है। अक्षांश के समानांतर के विपरीत, देशांतर की शिरोबिन्दुएं लंबाई में एकसमान होती हैं।
अगर कोई भूमध्य रेखा से ध्रुवों की तरफ जाता है तो दो देशांतरों के बीच की दूरी कम होती चली जाएगी। लंदन शहर के पास ग्रीनविच वेधशाला के उपर से गुजरने वाले देशांतर को ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) मानने पर एक समझौता हुआ था। इसे 00 देशांतर माना जाता है और यहां से हम 1800 पूर्व और 1800 पश्चिम की गणना करते हैं। 1800 पूर्व और 1800 पश्चिम देशांतर का एक ही रेखा होना दिलचस्प है। गड़बड़ी से बचने के लिए देशांतरों के मान के साथ ‘E’ और ‘W’ अक्षर को क्रमशः पूर्वी गोलार्द्ध और पश्चिमी गोलार्द्ध् के लिए लिखा जाता है।
समय का निर्धारण
एक घूर्णन पूरा करने में पृथ्वी करीब 24 घंटे का समय लेती है। घूर्णन की यह अवधि पृथ्वी–दिवस (अर्थ डे) कहलाती है। इसका अर्थ है कि 24 घंटे में पृथ्वी 360 डिग्री पूरा कर लेती है। इसलिए, प्रत्येक 150 डिग्री को पूरा करने के लिए यह एक घंटा या प्रत्येक डिग्री को पूरा करने के लिए यह 4 मिनट का समय लेती है। तदनुसार, पृथ्वी को एक घंटे के 24 समय मंडल में बांटा गया है। चूंकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की तरफ घूमती है अतः अलग– अलग स्थानों पर अलग– अलग समय पर दिन की शुरुआत होती है। ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) से पूर्व स्थित स्थानों पर ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) के पश्चिम में स्थित स्थानों की तुलना में सूर्योदय पहले होता है।
- भारत 6807′ से 97025′ E देशांतर केई मध्य विस्तृत है। इसलिए देश के स्थानीय समय के लिए किसी देशांतर को मानक समय के तौर पर अपनाए जाने की जरूरत महसूस की गई थी।
- इसके लिए भारत में 82030′ E को स्वीकार किया गया है। इसे भारतीय मानक समय (IST) के रूप में जाना जाता है।
- ग्रीनविच मीन टाइम भारतीय मानक समय से 5 घंटे 30 मिनट पीछे है। वैश्विक संदर्भ में ग्रीनविच (00) समय का पालन किया जाता है, जिसे ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) कहा जाता है।
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