रवीश कुमार: हिंदुस्तान का दुखता हुआ दिल

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यह बिरले होता है कि ख़बरनवीस ख़ुद ख़बर बन जाए।पिछले तीन रोज़ से एक ख़बरची ही ख़बर है: रवीश कुमार।

याद आती है कोई 18 साल पहले रवीश से एक मुलाक़ात। “ दिक्कत यह हुई है टेलिविज़न की दुनिया में कि जिसे ख़बर दिखाने का काम है, वह सोच बैठा है कि लोग समाचार नहीं, उसे देखने टी वी खोलते हैं।” रवीश ने कहा। उस वक़्त वे रिपोर्टिंग का काम कर रहे थे। हमने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में अपने संघर्ष को लेकर उनसे रिपोर्टिंग का अनुरोध किया था। रिपोर्ट बनी।लेकिन रवीश ने कहा, “ माफ़ कीजिए, कमज़ोर रिपोर्ट है!” कोई रिपोर्टर यह कहे,तब भी यह सोचना भी मुश्किल था,आज तो है ही।


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About Rashid Faridi

I am Rashid Aziz Faridi ,Writer, Teacher and a Voracious Reader.
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