चन्द्र ग्रहण

साधारणतः पूर्णिमा की रात को चंद्रमा पूर्णतः गोलाकार दिखाई पड़ना चाहिए, किन्तु कभी-कभी अपवादस्वरूप चंद्रमा के पूर्ण बिम्ब पर धनुष या हँसिया के आकार की काली परछाई दिखाई देने लगती है. कभी-कभी यह छाया चाँद को पूर्ण रूप से ढँक लेती है. पहली स्थिति को चन्द्र अंश ग्रहण या खंड-ग्रहण (partial lunar eclipse) कहते हैं और दूसरी स्थिति को चन्द्र पूर्ण ग्रहण या खग्रास (total lunar eclipse) कहते हैं.

चंद्र ग्रहण कब लगता है?
चंद्रमा सूर्य से प्रकाश प्राप्त करता है. उपग्रह होने के नाते चंद्रमा अपने अंडाकार कक्ष-तल पर पृथ्वी का लगभग एक माह में पूरा चक्कर लगा लेता है. चंद्रमा और पृथ्वी के कक्ष तल एक दूसरे पर 5° का कोण बनाते हुए दो स्थानों पर काटते हैं. इन स्थानों को ग्रंथि कहते हैं. साधारणतः चंद्रमा और पृथ्वी परिक्रमण करते हुए सूर्य की सीधी रेखा में नहीं आते हैं इसलिए पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर नहीं पड़ पाती है. किन्तु पूर्णिमा की रात्रि को परिक्रमण करता हुआ चंद्रमा पृथ्वी के कक्ष (orbit) के समीप पहुँच जाए और पृथ्वी की स्थिति सूर्य और चंद्रमा के बीच ठीक एक सीध में  हो तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है. चंद्रमा की ऐसी स्थिति को चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) कहते हैं. पर सदा ऐसी स्थिति नहीं आ पाती क्योंकि पृथ्वी की छाया चंद्रमा के अगल-बगल होकर निकल जाती है और ग्रहण नहीं लग पाता. चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) लगने की दो अनिवार्य दशाएँ हैं – चंद्रमा पूरा गोल चमकता हो और यह पृथ्वी के orbit के अधिक समीप हो.

Umbra और Penumbra
सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है और गोल है इसलिए पृथ्वी की परछाई दो शंकु बनाती है. परछाई के एक शंकु को प्रच्छाया (Umbra) तथा दूसरे को खंड छाया या उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं. चंद्रमा पर पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) पड़ने से ही ग्रहण लगता है क्योंकि यह छाया सघन होने के कारण पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति के अनुसार कभी चाँद को आंशिक रूप से और कभी पूर्ण रूप से ढँक लेती है. ये स्थितियाँ क्रमशः अंश-ग्रहण तथा पूर्णग्रहण कहलाती हैं. अंश-ग्रहण कुछ ही मिनट तथा पूर्ण ग्रहण कुछ घंटों तक लगता है. चंद्रमा परिक्रमण करते हुए आगे बढ़ जाता है और पृथ्वी की छाया से मुक्त होकर फिर से सूर्य के प्रकाश से प्रतिबिम्बित होने लगता है.

chandra-grahanप्रस्तुत चित्र को देखें जिसमें पृथ्वी की उपच्छायाएँ तथा प्रच्छाया दिखाई गई हैं. यदि कोई पृथ्वी की उपच्छाया (Penumbra) में खड़ा होकर चंद्रमा को देखेगा तो उसको चंद्रमा द्वारा प्रच्छाया (Umbra) वाला कटा हुआ भाग दिखाई नहीं देगा तथा उसे आंशिक चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) ही दृष्टिगोचर होगा, किन्तु यदि वह पृथ्वी के प्रच्छाया क्षेत्र में खड़ा होकर चाँद को देखेगा तो उसे प्रच्छाया (Umbra) से पूर्ण रूप से ढँका होने के कारण चाँद पूर्ण ग्रहण के रूप में दिखाई देगा. पृथ्वी की उपच्छाया (Penumbra) का चंद्रमा पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता. ग्रहण लगते समय चंद्रमा हमेशा पश्चिम की ओर से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है इसलिए सबसे पहले इसके पूर्वी भाग में ग्रहण लगता है और यह ग्रहण सरकते हुए पूर्व की ओर से निकल कर बाहर चला जाता है.

चंद्रमा एक स्थान से पश्चिम से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है. सर्वप्रथम इसका पूर्वी भाग प्रच्छाया (Umbra) में जाता है. दूसरे स्थान तक पहुँचने में चन्द्रमा को 1 घंटा 1 मिनट लगता है और तीसरे स्थान तक 2 घंटा 42 मिनट. इस प्रकार प्रच्छाया (Umbra) के केंद्र में पहुँचने के लिए चंद्रमा को लगभग 2 घंटे और मुक्त होने में लगभग 3 घंटे लग जाते हैं. प्रच्छाया (Umbra) से निकल कर चंद्रमा उपच्छाया (Penumbra) में प्रवेश करता है किन्तु इसके प्रकाश में कोई विशेष अंतर नहीं आता.

औसतन प्रति दस वर्षों में 15 चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) घटित होते हैं. एक वर्ष की अवधि में अधिक से अधिक 3 और कम से कम शून्य चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) लगते हैं. चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) के समय चंद्रमा एकदम काला न दिखाई देकर धुंधला लाल या ताम्बे के रंग का दृष्टिगोचर होता है. यह प्रकाश चंद्रमा से प्रतिबिम्बित नहीं होता वरन् सूर्य का होता है. सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के विपरीत भाग के वायुमंडल से परावर्तित होकर प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश हो जाता है जिसके कारण ग्रहण की अवस्था में चंद्रमा धुंधला हल्का लाल दिखाई देता है.

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