Food for Thought.
हम सबको बारिश बहुत अच्छी लगती है न! सिनेमा के परदे पर जब नायक बारिश में भीगता हुआ नायिका के सामने प्रेम-प्रस्ताव रखता है, हम उसमें अपने-आप को ढूंढने लगते हैं. अगर आप उत्तर भारतीय हैं तो याद कीजिये कितनी दफ़ा बारिश में नहाये हैं, कितनी दफ़ा बारिश के जमा पानी में कागज़ के नाव बनाकर तैरा चुके हैं. मतलब कि आपने बारिश के बगैर जीवन की कल्पना नहीं की होगी. वहीं देश में ऐसे हिस्से भी हैं जहाँ के लोगों ने सालों से बारिश नहीं देखी. उनकी कल्पनाओं की ज़मीन भी गांवों की ज़मीनों की तरह बंजर हो चुकी है.बीड़ भी ऐसी ही जगहों में से एक है.
लातूर बसस्थानक-2 से रवाना हुआ बीड़ के लिए. हम जैसे हिंदी पट्टी के लोगों के लिए महाराष्ट्र के ठेठ ग्रामीण क्षेत्रों में घुसते ही भाषा रोड़ा बनने लगती है और दुभाषिये की ज़रूरत पड़ने लगती है. जब किसी का दर्द महसूस…
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